We were heard’: the Pacific students who took their climate fight to the ICJ – and won

In a packed court thousands of kilometres from home, Cynthia Houniuhi saw years of work come to fruition with the landmark ICJ opinion on climate harm

I’m so nervous about today … it’s going to be OK. Let’s pray.”

Those were the quiet but powerful words of Cynthia Houniuhi on Wednesday morning, just before the international court of justice (ICJ) handed down its historic advisory opinion on climate change at the Peace palace in The Hague.

In the packed courtroom, thousands of kilometres from home, tension hung in the air. For Houniuhi – one of the original 27 Pacific law students who sparked the global legal campaign that led to the ruling – the moment was overwhelming.

As the judges began to speak, she became teary. Years of hard work and late nights had come down to this.

“I was literally hanging on to each and every word the judge was saying. I was anticipating, waiting for the things I hoped to hear. The more I listened, the more emotional I became,” Houniuhi said.

“When the judges stated that states’ obligations are not limited to the Paris agreement or the climate regime but also extend to environmental law, human rights law and international customary law, I cried right there in the courtroom.”

The ICJ’s advisory opinion for the first time gives the Pacific and all vulnerable communities a legal mechanism to hold states accountable and to demand the climate action long overdue.

In the landmark opinion published on Wednesday, the court said countries must prevent harm to the climate system and that failing to do so could result in their having to pay compensation and make other forms of restitution. It says states are liable for all kinds of activities that harm the climate, but it takes explicit aim at fossil fuels.

having to pay compensation and make other forms of restitution. It says states are liable for all kinds of activities that harm the climate, but it takes explicit aim at fossil fuels.

For a young Pacific woman at the forefront of this global fight, this win wasn’t just political, it was personal. And it was history.

“We were there. And we were heard,” she said.

The group of students all hailed from Pacific island countries that are among the most vulnerable in the world to the climate crisis. They came up with the idea of changing international law by getting the world’s highest court to issue an advisory opinion on the climate crisis.

The campaign was led by the nation of Vanuatu, a Pacific state of about 300,000 people that sits at the forefront of the climate crisis and has been ranked by the United Nations as the country most prone to natural disasters

The Ni-Vanuatu anthropologist and minister for climate change, Ralph Regenvanu, remembered when those same students first approached him for support in 2019.

“Back then I never imagined it would grow this big. It felt like a wild dream – this idea that we could go to the ICJ. But we thought, ‘Why not?’ There was youthful ambition and energy, and surprisingly – with support from across the world – we got here. Especially thanks to the international youth climate justice movement.”

But it wasn’t easy. Over the years, the movement faced resistance from major emitting countries. The Pacific had to go back, gather more evidence, more testimonies – and keep pushing, despite the odds.

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Highlights india vs England match today

भारत बनाम इंग्लैंड: चौथा टेस्ट, मैनचेस्टर – एक रोमांचक दिन की कहानी

आज, 24 जुलाई 2025, मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड में भारत और इंग्लैंड के बीच चौथे टेस्ट का दूसरा दिन खेला गया, और क्या शानदार दिन था! एक क्रिकेट प्रेमी के तौर पर, मैंने हर गेंद को उत्साह से देखा, और आज का खेल निश्चित रूप से यादगार रहा। भारत ने पहले दिन की मजबूत शुरुआत को और आगे बढ़ाया, लेकिन इंग्लैंड ने भी अपनी गेंदबाजी से कुछ जवाबी हमले किए। आइए, इस रोमांचक दिन की कहानी को थोड़ा करीब से देखें।

पहले दिन के अंत में भारत ने 264/4 का स्कोर बनाया था, जिसमें शुभमन गिल और यशस्वी जायसवाल जैसे बल्लेबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया। आज सुबह, जब खेल शुरू हुआ, तो रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जडेजा क्रीज पर थे। भारतीय प्रशंसकों की उम्मीदें थीं कि ये दोनों बल्लेबाज स्कोर को 400 के पार ले जाएंगे। लेकिन इंग्लैंड के गेंदबाजों, खासकर ब्रायडन कार्स और क्रिस वोक्स, ने सुबह के सत्र में शानदार गेंदबाजी की। जडेजा ने कुछ आकर्षक शॉट्स खेले, लेकिन वोक्स ने उन्हें 41 रन पर आउट कर भारत को पहला झटका दिया। इसके बाद अश्विन भी ज्यादा देर नहीं टिक सके और जोश टंग की गेंद पर बोल्ड हो गए।

भारत का मध्यक्रम और निचला मध्यक्रम आज थोड़ा लड़खड़ा गया। शार्दुल ठाकुर और वॉशिंगटन सुंदर ने कुछ उपयोगी रन जोड़े, लेकिन इंग्लैंड की गेंदबाजी अनुशासित थी। भारत की पारी 350 के आसपास सिमट गई, जो पहले दिन के प्रदर्शन को देखते हुए थोड़ा कम लग रहा था। फिर भी, शुभमन गिल की कप्तानी पारी (पहले दिन की शतकीय पारी) और साई सुदर्शन की अर्धशतकीय पारी ने भारत को एक सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचाया।

जब इंग्लैंड की बल्लेबाजी शुरू हुई, तो भारतीय गेंदबाजों ने दबाव बनाना शुरू किया। मोहम्मद सिराज और अंशुल कांबोज ने शुरुआती सत्र में शानदार गेंदबाजी की। सिराज ने बेन डकेट को जल्दी आउट कर इंग्लैंड को बैकफुट पर ला दिया। लेकिन जो रूट और हैरी ब्रूक ने पारी को संभाला। रूट, जो हमेशा की तरह शांत और तकनीकी रूप से मजबूत दिखे, ने कुछ शानदार कवर ड्राइव खेले। दूसरी ओर, ब्रूक ने अपने आक्रामक अंदाज से भारतीय गेंदबाजों पर दबाव बनाया। दिन के अंत तक इंग्लैंड ने 3 विकेट खोकर 150 रन के आसपास स्कोर बना लिया था, जो भारत के स्कोर से अभी भी काफी पीछे था।

आज के दिन का सबसे रोमांचक पल था जब रविचंद्रन अश्विन ने जैक क्रॉली को एक शानदार टर्निंग गेंद पर बोल्ड किया। स्टेडियम में मौजूद भारतीय प्रशंसकों का उत्साह देखने लायक था। अश्विन की गेंदबाजी में आज वही पुराना जादू दिखा, जो उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ स्पिनरों में से एक बनाता है। दूसरी ओर, इंग्लैंड के कप्तान बेन स्टोक्स ने भी कुछ आकर्षक शॉट्स खेले, जिससे यह साफ हो गया कि यह टेस्ट मैच अभी किसी भी दिशा में जा सकता है।

पिच की बात करें तो, मैनचेस्टर की पिच अभी भी बल्लेबाजी के लिए अच्छी है, लेकिन जैसे-जैसे मैच आगे बढ़ेगा, इसमें स्पिनरों के लिए मदद मिलने की संभावना है। भारतीय टीम को उम्मीद होगी कि जडेजा और अश्विन की जोड़ी इंग्लैंड की बल्लेबाजी को जल्दी समेट दे। लेकिन इंग्लैंड की मौजूदा फॉर्म और उनके “बैजबॉल” अंदाज को देखते हुए, यह आसान नहीं होगा।

कुल मिलाकर, आज का दिन क्रिकेट का एक शानदार नमूना था। दोनों टीमें बराबरी पर दिख रही हैं, और अगले कुछ दिन इस सीरीज का रुख तय करेंगे। भारतीय प्रशंसक शुभमन गिल की कप्तानी और युवा खिलाड़ियों जैसे साई सुदर्शन के प्रदर्शन से उत्साहित होंगे। दूसरी ओर, इंग्लैंड के पास रूट और स्टोक्स जैसे अनुभवी खिलाड़ी हैं, जो किसी भी समय खेल का पासा पलट सकते हैं। मैं, एक क्रिकेट प्रेमी के तौर पर, अगले दिन का इंतजार बेसब्री से कर रहा हूँ। आपका क्या ख्याल है? क्या भारत इस टेस्ट को जीतकर सीरीज में वापसी करेगा, या इंग्लैंड अपनी बढ़त को और मजबूत करेगा?

भारत व इंग्लैंड टेस्ट मैच सीरीज 2025

 

 

 

 

भारत और इंग्लैंड के बीच 2025 में खेली जा रही पांच टेस्ट मैचों की एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी सीरीज क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक शानदार अनुभव साबित हो रही है। यह सीरीज, जो 20 जून से शुरू हुई, अपने रोमांच, रिकॉर्ड्स और शानदार प्रदर्शन के लिए चर्चा में है। इस ब्लॉग में हम इस सीरीज के अब तक के प्रमुख क्षणों, खिलाड़ियों के प्रदर्शन और महत्वपूर्ण आंकड़ों पर नजर डालेंगे।

सीरीज का आगाज और पहला टेस्ट

लीड्स के हेडिंग्ले मैदान पर खेले गए पहले टेस्ट में इंग्लैंड ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया। भारत ने पहली पारी में 210 रन के आसपास स्कोर बनाया, जिसमें शुभमन गिल और यशस्वी जायसवाल की साझेदारी अहम रही। हालांकि, इंग्लैंड ने जो रूट और ओली पोप की शानदार बल्लेबाजी की बदौलत 5 विकेट से जीत हासिल कर सीरीज में 1-0 की बढ़त बना ली। भारतीय कोच गौतम गंभीर ने फील्डिंग में कमियों को स्वीकार करते हुए कहा कि ऐसी गलतियां सुधार की जरूरत हैं।

दूसरा टेस्ट: भारत का ऐतिहासिक प्रदर्शन

एजबेस्टन, बर्मिंघम में खेले गए दूसरे टेस्ट में भारत ने शानदार वापसी की। भारत ने पहली पारी में 587 रन बनाए, जिसमें शुभमन गिल की 269 रनों की मैराथन पारी शामिल थी। गिल एक टेस्ट मैच में 400 रन (पहली पारी में 269 और दूसरी में 161) बनाने वाले पहले भारतीय बने। भारत ने दूसरी पारी 427 रनों पर घोषित की, जिसके बाद इंग्लैंड को 608 रनों का विशाल लक्ष्य मिला। इंग्लैंड की टीम 271 रनों पर ढेर हो गई, और भारत ने 336 रनों से जीत दर्ज की। यह एजबेस्टन में भारत की पहली टेस्ट जीत थी, जिसने 58 साल के सूखे को खत्म किया। मोहम्मद सिराज और आकाश दीप की गेंदबाजी ने इंग्लैंड को बैकफुट पर धकेल दिया।

तीसरा टेस्ट: लॉर्ड्स में इंग्लैंड की पकड़

लॉर्ड्स में खेले गए तीसरे टेस्ट में इंग्लैंड ने फिर से दबदबा बनाया। टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करते हुए इंग्लैंड ने जो रूट (99*) और बेन स्टोक्स (39*) की नाबाद साझेदारी की बदौलत पहले दिन 4 विकेट पर 251 रन बनाए। भारतीय गेंदबाजों, विशेष रूप से जसप्रीत बुमराह और रवींद्र जडेजा, ने विकेट लेने की कोशिश की, लेकिन रूट की शानदार बल्लेबाजी ने इंग्लैंड को मजबूत स्थिति में पहुंचाया। इस जीत के बाद इंग्लैंड ने सीरीज में 2-1 की बढ़त बना ली।

चौथा टेस्ट: भारत की चुनौती

मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड में चौथा टेस्ट चल रहा है, जहां भारत ने साई सुदर्शन और शुभमन गिल जैसे खिलाड़ियों के दम पर वापसी की कोशिश की। हालांकि, इंग्लैंड की मजबूत गेंदबाजी और रणनीति ने भारत को कड़ी चुनौती दी। यह मुकाबला सीरीज के नतीजे के लिए निर्णायक हो सकता है।

प्रमुख खिलाड़ी और रिकॉर्ड्स

शुभमन गिल: भारतीय कप्तान ने इस सीरीज में अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया। उनकी डबल सेंचुरी और शतक ने उन्हें सुनील गावस्कर के बाद अनोखा रिकॉर्ड बनाने वाला दूसरा भारतीय बनाया।

जो रूट: इंग्लैंड के इस अनुभवी बल्लेबाज ने लॉर्ड्स में 37वां शतक पूरा करने के करीब पहुंचकर अपनी क्लास दिखाई।

रवींद्र जडेजा और मोहम्मद सिराज: दोनों ने गेंदबाजी और बल्लेबाजी में योगदान दिया, जिससे भारत ने कई मौकों पर वापसी की।

Henley Passport Index में भारत की लंबी छलांग, अमेरिका-ब्रिटेन के पासपोर्ट की रैंकिंग गिरी

Henley Passport Index 2025 के नवीनतम अपडेट में भारत ने उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है, जो आठ स्थान की छलांग के साथ 85वें से 77वें स्थान पर पहुंच गया है। भारतीय पासपोर्ट धारकों को अब 59 देशों में वीजा-मुक्त या वीजा-ऑन-अराइवल सुविधा प्राप्त है, जिसमें थाईलैंड, इंडोनेशिया, श्रीलंका, भूटान, नेपाल, केन्या और जमैका जैसे लोकप्रिय पर्यटक स्थल शामिल हैं। यह सुधार भारत के बढ़ते राजनयिक संबंधों और द्विपक्षीय समझौतों का परिणाम है। हालांकि, अमेरिका, ब्रिटेन, शेंगेन देशों और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के लिए अभी भी वीजा आवश्यक है। दूसरी ओर, सिंगापुर 195 देशों में वीजा-मुक्त पहुंच के साथ शीर्ष पर बना हुआ है, जबकि जापान 193 देशों के साथ दूसरे स्थान पर है। अमेरिका की रैंकिंग 2014 में पहले स्थान से गिरकर 2025 में 9वें स्थान पर आ गई है, जो सात स्थान की गिरावट दर्शाता है। इसी तरह, ब्रिटेन 2015 में शीर्ष स्थान से खिसककर 5वें स्थान पर है। भारत की यह प्रगति वैश्विक गतिशीलता में सुधार और मजबूत अंतरराष्ट्रीय संबंधों का संकेत देती है, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों की रैंकिंग में गिरावट उनकी घटती राजनयिक पहुंच को दर्शाती है।

UNESCO से बाहर होगा America

**यूनेस्को से अमेरिका का बाहर होना: कारण और प्रभाव**

 

संयुक्त राज्य अमेरिका ने हाल ही में घोषणा की है कि वह संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) से 31 दिसंबर, 2026 को बाहर हो जाएगा। यह निर्णय ट्रम्प प्रशासन की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के अनुरूप है, जिसके तहत अमेरिका ने कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों से दूरी बनाई है। यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने यूनेस्को से हटने का फैसला किया है; इससे पहले 1984 और 2017 में भी ऐसा हो चुका है। इस लेख में इस निर्णय के कारणों, इसके ऐतिहासिक संदर्भ और संभावित प्रभावों पर चर्चा की जाएगी।

 

### **निर्णय के कारण**

अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने बयान दिया कि यूनेस्को का “विभाजनकारी सामाजिक और सांस्कृतिक एजेंडा” और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) पर “अत्यधिक ध्यान” अमेरिका की नीतियों के साथ मेल नहीं खाता। इसके अलावा, यूनेस्को द्वारा 2011 में फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार करने को अमेरिका ने “इजरायल-विरोधी” और अपनी नीतियों के खिलाफ माना है। यह कदम अमेरिका की उस नीति को दर्शाता है, जिसमें वह उन अंतरराष्ट्रीय संगठनों से दूरी बनाना चाहता है जो उसके राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा नहीं देते।

 

इसके अतिरिक्त, यूनेस्को पर “इजरायल-विरोधी पूर्वाग्रह” का आरोप लगाया गया है। अमेरिका और इजरायल दोनों ने दावा किया है कि यूनेस्को ने बार-बार इजरायल के ऐतिहासिक स्थलों को फिलिस्तीनी धरोहर के रूप में नामित किया और इजरायल की आलोचना करने वाले प्रस्ताव पारित किए। उदाहरण के लिए, 2017 में हेब्रोन के पुराने शहर को फिलिस्तीनी विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया, जिसे इजरायल और अमेरिका ने अपने हितों के खिलाफ माना।

 

### **ऐतिहासिक संदर्भ**

अमेरिका का यूनेस्को के साथ संबंध हमेशा से उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 1984 में, रोनाल्ड रीगन प्रशासन ने यूनेस्को पर सोवियत प्रभाव और इजरायल-विरोधी रुख का आरोप लगाते हुए संगठन से हटने का फैसला किया था। उस समय, यूनेस्को की नीतियों को पश्चिमी देशों के खिलाफ माना गया, विशेष रूप से तीसरी दुनिया के देशों के बढ़ते प्रभाव के कारण। 2002 में, जॉर्ज डब्ल्यू. बुश प्रशासन ने सुधारों का हवाला देते हुए फिर से यूनेस्को में शामिल होने का निर्णय लिया। हालांकि, 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने फिर से हटने का फैसला किया, जिसे बाइडेन प्रशासन ने 2023 में उलट दिया था।

2023 में अमेरिका के फिर से शामिल होने का मुख्य कारण चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना था। बाइडेन प्रशासन ने यूनेस्को को $619 मिलियन की बकाया राशि का भुगतान करने की योजना बनाई थी, जो संगठन के बजट का एक बड़ा हिस्सा था। लेकिन ट्रम्प के दोबारा सत्ता में आने के बाद, “अमेरिका फर्स्ट” नीति ने फिर से इस निर्णय को प्रभावित किया।

 

### **प्रभाव**

अमेरिका का यूनेस्को से बाहर होना संगठन के लिए वित्तीय और राजनीतिक चुनौतियां पैदा कर सकता है। हालांकि, यूनेस्को ने 2018 से अपनी वित्तीय निर्भरता को कम करने के लिए कदम उठाए हैं, और अब अमेरिका का योगदान इसके कुल बजट का केवल 8% है, जो पहले 22% था। फिर भी, यह कदम यूनेस्को की विश्वसनीयता और वैश्विक सहयोग की भावना को प्रभावित कर सकता है।

 

इजरायल ने इस निर्णय का स्वागत किया है, और विदेश मंत्री गिदोन सा’र ने इसे “न्याय और इजरायल के प्रति निष्पक्षता” की दिशा में एक कदम बताया। दूसरी ओर, यूनेस्को की महानिदेशक ऑद्रे अज़ोउले ने इसे “दुर्भाग्यपूर्ण” करार देते हुए कहा कि यह बहुपक्षीय सहयोग के सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यूनेस्को ने होलोकॉस्ट शिक्षा और यहूदी-विरोधी भावनाओं के खिलाफ महत्वपूर्ण काम किया है, जिसे अमेरिका की ओर से अनदेखा किया गया।

 

### **निष्कर्ष**

अमेरिका का यूनेस्को से बाहर होना ट्रम्प प्रशासन की बहुपक्षीय संगठनों के प्रति संदेह की नीति का हिस्सा है। यह कदम वैश्विक शिक्षा, संस्कृति और विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग को प्रभावित कर सकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां अमेरिका की भागीदारी महत्वपूर्ण थी। हालांकि, यूनेस्को ने इस तरह के झटकों से उबरने की तैयारी की है, और यह देखना बाकी है कि यह संगठन भविष्य में अपनी प्रासंगिकता और प्रभाव को कैसे बनाए रखे