UNESCO से बाहर होगा America

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**यूनेस्को से अमेरिका का बाहर होना: कारण और प्रभाव**

 

संयुक्त राज्य अमेरिका ने हाल ही में घोषणा की है कि वह संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) से 31 दिसंबर, 2026 को बाहर हो जाएगा। यह निर्णय ट्रम्प प्रशासन की “अमेरिका फर्स्ट” नीति के अनुरूप है, जिसके तहत अमेरिका ने कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों से दूरी बनाई है। यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने यूनेस्को से हटने का फैसला किया है; इससे पहले 1984 और 2017 में भी ऐसा हो चुका है। इस लेख में इस निर्णय के कारणों, इसके ऐतिहासिक संदर्भ और संभावित प्रभावों पर चर्चा की जाएगी।

 

### **निर्णय के कारण**

अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता टैमी ब्रूस ने बयान दिया कि यूनेस्को का “विभाजनकारी सामाजिक और सांस्कृतिक एजेंडा” और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) पर “अत्यधिक ध्यान” अमेरिका की नीतियों के साथ मेल नहीं खाता। इसके अलावा, यूनेस्को द्वारा 2011 में फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार करने को अमेरिका ने “इजरायल-विरोधी” और अपनी नीतियों के खिलाफ माना है। यह कदम अमेरिका की उस नीति को दर्शाता है, जिसमें वह उन अंतरराष्ट्रीय संगठनों से दूरी बनाना चाहता है जो उसके राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा नहीं देते।

 

इसके अतिरिक्त, यूनेस्को पर “इजरायल-विरोधी पूर्वाग्रह” का आरोप लगाया गया है। अमेरिका और इजरायल दोनों ने दावा किया है कि यूनेस्को ने बार-बार इजरायल के ऐतिहासिक स्थलों को फिलिस्तीनी धरोहर के रूप में नामित किया और इजरायल की आलोचना करने वाले प्रस्ताव पारित किए। उदाहरण के लिए, 2017 में हेब्रोन के पुराने शहर को फिलिस्तीनी विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया गया, जिसे इजरायल और अमेरिका ने अपने हितों के खिलाफ माना।

 

### **ऐतिहासिक संदर्भ**

अमेरिका का यूनेस्को के साथ संबंध हमेशा से उतार-चढ़ाव भरा रहा है। 1984 में, रोनाल्ड रीगन प्रशासन ने यूनेस्को पर सोवियत प्रभाव और इजरायल-विरोधी रुख का आरोप लगाते हुए संगठन से हटने का फैसला किया था। उस समय, यूनेस्को की नीतियों को पश्चिमी देशों के खिलाफ माना गया, विशेष रूप से तीसरी दुनिया के देशों के बढ़ते प्रभाव के कारण। 2002 में, जॉर्ज डब्ल्यू. बुश प्रशासन ने सुधारों का हवाला देते हुए फिर से यूनेस्को में शामिल होने का निर्णय लिया। हालांकि, 2017 में ट्रम्प प्रशासन ने फिर से हटने का फैसला किया, जिसे बाइडेन प्रशासन ने 2023 में उलट दिया था।

2023 में अमेरिका के फिर से शामिल होने का मुख्य कारण चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना था। बाइडेन प्रशासन ने यूनेस्को को $619 मिलियन की बकाया राशि का भुगतान करने की योजना बनाई थी, जो संगठन के बजट का एक बड़ा हिस्सा था। लेकिन ट्रम्प के दोबारा सत्ता में आने के बाद, “अमेरिका फर्स्ट” नीति ने फिर से इस निर्णय को प्रभावित किया।

 

### **प्रभाव**

अमेरिका का यूनेस्को से बाहर होना संगठन के लिए वित्तीय और राजनीतिक चुनौतियां पैदा कर सकता है। हालांकि, यूनेस्को ने 2018 से अपनी वित्तीय निर्भरता को कम करने के लिए कदम उठाए हैं, और अब अमेरिका का योगदान इसके कुल बजट का केवल 8% है, जो पहले 22% था। फिर भी, यह कदम यूनेस्को की विश्वसनीयता और वैश्विक सहयोग की भावना को प्रभावित कर सकता है।

 

इजरायल ने इस निर्णय का स्वागत किया है, और विदेश मंत्री गिदोन सा’र ने इसे “न्याय और इजरायल के प्रति निष्पक्षता” की दिशा में एक कदम बताया। दूसरी ओर, यूनेस्को की महानिदेशक ऑद्रे अज़ोउले ने इसे “दुर्भाग्यपूर्ण” करार देते हुए कहा कि यह बहुपक्षीय सहयोग के सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि यूनेस्को ने होलोकॉस्ट शिक्षा और यहूदी-विरोधी भावनाओं के खिलाफ महत्वपूर्ण काम किया है, जिसे अमेरिका की ओर से अनदेखा किया गया।

 

### **निष्कर्ष**

अमेरिका का यूनेस्को से बाहर होना ट्रम्प प्रशासन की बहुपक्षीय संगठनों के प्रति संदेह की नीति का हिस्सा है। यह कदम वैश्विक शिक्षा, संस्कृति और विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग को प्रभावित कर सकता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां अमेरिका की भागीदारी महत्वपूर्ण थी। हालांकि, यूनेस्को ने इस तरह के झटकों से उबरने की तैयारी की है, और यह देखना बाकी है कि यह संगठन भविष्य में अपनी प्रासंगिकता और प्रभाव को कैसे बनाए रखे

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