उपराष्ट्रपति धनखड़ का इस्तीफा: स्वास्थ्य या सियासी दबाव? संसद में हलचल

भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने 21 जुलाई 2025 को स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए अपने पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया। यह घोषणा संसद के मानसून सत्र के पहले दिन हुई, जिसने राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में व्यापक चर्चा और अटकलों को जन्म दिया। धनखड़ ने अपने इस्तीफे में संविधान के अनुच्छेद 67(क) के तहत पद छोड़ने की बात कही, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य देखभाल को प्राथमिकता देने और चिकित्सकीय सलाह का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनके इस कदम ने न केवल राजनीतिक हलकों में हलचल मचाई, बल्कि उनके कार्यकाल और स्वास्थ्य से जुड़े सवालों को भी सामने लाया।

 

जगदीप धनखड़, जो अगस्त 2022 में भारत के 14वें उपराष्ट्रपति बने थे, ने अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। पेशे से वकील और पूर्व में पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे धनखड़ का कार्यकाल विवादों से भी घिरा रहा। खासतौर पर, विपक्षी दलों ने उन पर पक्षपातपूर्ण रवैये का आरोप लगाया और उनके खिलाफ राज्यसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश भी की। इसके बावजूद, धनखड़ ने अपने पत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संसद सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त किया। उन्होंने अपने अनुभवों को “अमूल्य” बताया और भारत की आर्थिक प्रगति व विकास में योगदान को अपने लिए गर्व का विषय कहा।

 

धनखड़ के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे हाल के महीनों में सुर्खियों में रहे हैं। मार्च 2025 में उन्हें सीने में दर्द की शिकायत के बाद दिल्ली के एम्स में भर्ती किया गया था, जहाँ उनकी एंजियोप्लास्टी हुई। इसके अलावा, 25 जून 2025 को उत्तराखंड के नैनीताल में कुमाऊं विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम के दौरान उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई थी, जिसके बाद उन्हें राजभवन में चिकित्सकीय देखभाल दी गई। इन घटनाओं ने उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंताएँ बढ़ाई थीं, और उनके परिवार ने भी उन्हें स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की सलाह दी थी।

 

हालांकि, धनखड़ के इस्तीफे की टाइमिंग ने कई सवाल खड़े किए हैं। यह इस्तीफा संसद सत्र के पहले दिन आया, जब वे दिनभर संसद भवन में मौजूद थे और शाम 7:30 बजे तक कांग्रेस नेता जयराम रमेश से उनकी फोन पर बात हुई थी। विपक्षी नेताओं, जैसे जयराम रमेश और इमरान मसूद, ने इस अचानक फैसले पर आश्चर्य जताया और इसके पीछे अन्य संभावित कारणों की ओर इशारा किया। रमेश ने कहा कि स्वास्थ्य निश्चित रूप से प्राथमिकता है, लेकिन इस्तीफे के पीछे “जो दिखाई दे रहा है, उससे कहीं ज्यादा” हो सकता है। कुछ विपक्षी नेताओं ने सरकार पर इस मुद्दे को लेकर हमलावर रुख अपनाया, जिससे संसद में हंगामे की आशंका बढ़ गई है।

 

संविधान के अनुसार, उपराष्ट्रपति के इस्तीफे के लिए स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती, और धनखड़ का इस्तीफा तत्काल प्रभाव से लागू हो गया। अब 60 दिनों के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चुनाव होना है, जिसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य भाग लेंगे। तब तक राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह कार्यवाहक सभापति के रूप में जिम्मेदारी संभालेंगे। धनखड़ का इस्तीफा भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है, और नई नियुक्ति को लेकर चर्चाएँ तेज हो गई हैं।

 

धनखड़ के कार्यकाल को भारत के परिवर्तनकारी युग का हिस्सा माना गया, जिसमें उन्होंने देश की वैश्विक प्रतिष्ठा और आर्थिक प्रगति की सराहना की। उनके इस्तीफे ने उनके समर्थकों और आलोचकों दोनों के बीच बहस छेड़ दी है। जहाँ कुछ लोग उनके स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएँ दे रहे हैं, वहीं अन्य इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या यह इस्तीफा केवल स्वास्थ्य कारणों से था या इसके पीछे कोई राजनीतिक दबाव भी था।