Kamal Haasan Makes Parliament Debut, Takes Oath As Rajya Sabha MP In Tamil

 

अभिनेता से नेता बने और मक्कल निधि मय्यम (एमएनएम) प्रमुख कमल हासन ने शुक्रवार को राज्यसभा में सांसद के रूप में शपथ लेकर संसद में पदार्पण किया। उन्होंने साथी सांसदों की ज़ोरदार मेज़ थपथपाहट के बीच तमिल में शपथ ली।

69 वर्षीय राजनेता को 12 जून को डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन के समर्थन से राज्यसभा के लिए निर्विरोध चुना गया था।

शपथ ग्रहण समारोह से पहले, श्री हासन ने कहा, “मैं आज दिल्ली में शपथ लेने और अपना नाम पंजीकृत कराने जा रहा हूं। मैं एक भारतीय के रूप में मुझे दिए गए सम्मान के साथ इस कर्तव्य को पूरा करने जा रहा हूं।”

एक दिन पहले, श्री हासन ने एनडीटीवी को बताया कि वह “सम्मानित” महसूस कर रहे हैं और अपनी संसदीय यात्रा शुरू करते हुए उन पर लगाई गई उम्मीदों के प्रति सचेत हैं। उन्होंने कहा, “शुरुआत से ही मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ। मुझे पता है कि मुझे बहुत कुछ करना है। मुझसे कुछ अपेक्षाएँ हैं – मुझे उम्मीद है कि मैं उन उम्मीदों पर खरा उतरूँगा। मैं पूरी कोशिश करूँगा कि मैं ईमानदार और गंभीर रहूँ और तमिलनाडु और भारत के लिए बोलूँ।”

श्री हासन ने 2017 में भ्रष्टाचार से लड़ने, ग्रामीण विकास और पर्यावरणीय स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करते हुए अपनी पार्टी की स्थापना की थी। 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी को लगभग 4 प्रतिशत वोट मिले थे। इसके बाद उन्होंने 2021 का तमिलनाडु विधानसभा चुनाव लड़ा, जहाँ श्री हासन कोयंबटूर दक्षिण सीट से भाजपा की वनाथी श्रीनिवासन से मामूली अंतर से हार गए।

 

कमल हासन के नेतृत्व वाली पार्टी ने 2024 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा था, बल्कि सत्तारूढ़ द्रमुक को अपना समर्थन दिया था – इसे “समय की ज़रूरत” बताते हुए। तमिलनाडु में द्रमुक की जीत के बाद, पार्टी ने महिलाओं को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के लिए श्री हासन के दृष्टिकोण को अपनाया और पात्र महिला परिवारों को 1,000 रुपये मासिक सहायता देने की अपनी प्रमुख योजना शुरू की।

एमएनएम के डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन के हिस्से के रूप में 2026 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव लड़ने की उम्मीद है।

 

ऑपरेशन सिंदुर पर संसद में 16 घटें चर्चा, सोमवार से लोकसभा में बहस

 

 

भारत में हाल ही में एक महत्वपूर्ण सैन्य अभियान “ऑपरेशन सिंदूर” को लेकर देशभर में चर्चा तेज़ हो गई है। इस ऑपरेशन की रणनीति, उद्देश्य और इसके राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य परिणामों पर संसद में गहन चर्चा होने जा रही है। लोकसभा और राज्यसभा में इस मुद्दे पर 16 घंटे की बहस तय की गई है, जिसकी शुरुआत सोमवार से होगी।

क्या है ऑपरेशन सिंदूर?

ऑपरेशन सिंदूर भारत द्वारा पड़ोसी क्षेत्रों में सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी कार्रवाई और रणनीतिक संतुलन बनाए रखने के उद्देश्य से शुरू किया गया एक व्यापक सैन्य अभियान है। यह ऑपरेशन एक साथ कई मोर्चों पर चलाया गया, जिसमें भारतीय सेना, नौसेना और वायुसेना की संयुक्त भूमिका रही। इसका उद्देश्य सीमाओं पर बढ़ती सुरक्षा चुनौतियों से निपटना और भारत की सामरिक शक्ति का प्रदर्शन करना है

संसद में चर्चा का महत्व

संसद में किसी सैन्य अभियान पर चर्चा होना यह दिखाता है कि लोकतंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही को कितना महत्व दिया जाता है। इस बहस में सत्तारूढ़ पार्टी के साथ-साथ विपक्ष भी अपनी राय रखेगा। सरकार की तरफ से ऑपरेशन की पृष्ठभूमि, निर्णय लेने की प्रक्रिया, रणनीति और उसके परिणामों को रखा जाएगा, वहीं विपक्ष सवाल उठा सकता है कि यह कदम कितना आवश्यक था, इससे देश की सुरक्षा और विदेश नीति पर क्या असर पड़ा।

राजनीतिक दृष्टिकोण

यह बहस केवल एक सैन्य ऑपरेशन पर नहीं है, बल्कि यह सरकार की विदेश नीति, कूटनीति, सुरक्षा रणनीति और आंतरिक निर्णय प्रक्रिया की पारदर्शिता का भी मूल्यांकन है। कुछ विपक्षी नेता इसे सरकार की राजनीतिक छवि मजबूत करने की कोशिश बता रहे हैं, जबकि सरकार का कहना है कि यह राष्ट्रहित में उठाया गया कदम है।

जनता की नजर में ऑपरेशन सिंदूर

ऑपरेशन सिंदूर को लेकर आम जनता में भी काफी उत्सुकता है। सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलों पर इसके बारे में लगातार चर्चा हो रही है। देशभक्ति की भावना के साथ-साथ लोग यह भी जानना चाहते हैं कि इस ऑपरेशन का वास्तविक उद्देश्य और परिणाम क्या हैं।

निष्कर्ष:

सोमवार से शुरू हो रही संसद की 16 घंटे की बहस “ऑपरेशन सिंदूर” पर न केवल देश की सुरक्षा और रणनीति के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होगी, बल्कि यह लोकतांत्रिक व्यवस्था की परिपक्वता को भी दर्शाएगी। यह चर्चा देश के नागरिकों को जानकारी देने, सवाल पूछने और राष्ट्रहित में निर्णयों की समी

क्षा करने का एक अनोखा अवसर है।

 

 

एक जुट नहीं है विपक्ष? जयराम दे रहे जगदीप धनखड़ का साथ, विपक्षी सांसदों में बंटी राय

भारतीय विपक्ष की एकजुटता हाल के घटनाक्रमों में सवालों के घेरे में है, खासकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे को लेकर। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने धनखड़ के अचानक इस्तीफे को अप्रत्याशित बताया और उनके स्वास्थ्य की कामना करते हुए कहा कि इस्तीफे के पीछे अन्य कारण भी हो सकते हैं। उन्होंने धनखड़ के फैसले पर पुनर्विचार की अपील की और प्रधानमंत्री से उन्हें मनाने का आग्रह किया। यह बयान विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के कुछ नेताओं के रुख से अलग है, जो धनखड़ पर पक्षपात का आरोप लगाते रहे हैं। पहले विपक्ष ने धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया था, लेकिन बीजेडी जैसे दलों ने समर्थन नहीं दिया। कुछ विपक्षी सांसदों, जैसे इमरान मसूद और कपिल सिब्बल, ने धनखड़ के साथ अच्छे संबंधों का जिक्र किया, जबकि अन्य ने इस्तीफे को बीजेपी की रणनीति से जोड़ा। यह मतभेद विपक्षी एकता पर सवाल उठाता है, क्योंकि जहां जयराम धनखड़ का समर्थन करते दिखे, वहीं अन्य सांसदों की राय बंटी हुई है। इससे विपक्ष की रणनीति और एकजुटता की कमी उजागर होती है।

विपक्ष संसद में ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले पर चर्चा की मांग पर अड़ा, PM की उपस्थिति की भी मांग।

विपक्ष संसद में ऑपरेशन सिंदूर और पहलगाम हमले पर चर्चा की मांग को लेकर अडिग है। इन घटनाओं ने देश की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं, जिसके चलते विपक्ष सरकार से जवाबदेही की मांग कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि इन हमलों ने राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती दी है, और इस पर खुले तौर पर बहस जरूरी है। साथ ही, विपक्ष ने प्रधानमंत्री की संसद में उपस्थिति की मांग की है ताकि वह इन मुद्दों पर सरकार का पक्ष स्पष्ट करें। यह मांग संसद के मौजूदा सत्र में तनाव का कारण बन रही है